प्रक्रिया के छेद
आखिर वही हुआ जिसकी आशंका जताई जा रही थी। 8706 जेबीटी अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया में धांधली की जांच के शुरुआती चरण के परिणाम चौंकाने, शासन-प्रशासन की आंखें खोलने वाले तो हैं ही, व्यवस्था पर भी प्रश्नचिह्न चस्पां रहे हैं। आरंभ के 54 में से सिर्फ आठ उम्मीदवार सही पाए गए। 21 स्टैट उत्तीर्ण उम्मीदवार फर्जी निकले और 25 का रिकॉर्ड ही पूरा नहीं मिला। हाईकोर्ट के आदेश पर शुरू हुई जांच में उम्मीदवारों के अंगूठे का मिलान नहीं हुआ। इसका अर्थ हुआ कि उनकी जगह किसी और ने स्टैट की परीक्षा दी थी। जांच पूरी होने के बाद यदि फर्जीवाड़े का आंकड़ा इसी तरह विशालकाय मिला तब शिक्षा विभाग की मुद्रा कैसी होगी? चयन प्रक्रिया की वैधता, निष्पक्षता, पारदर्शिता और औचित्य को सही ठहराने के लिए कौन से तर्क प्रस्तुत किए जाएंगे? न्याय के मानकों पर प्रक्रिया खरी न उतरने पर अदालत का फैसला यदि कठोर हुआ तो इसके लिए जिम्मेदार किसे माना जाएगा? सबसे अहम सवाल तो यह है कि जेबीटी भर्ती मामले में प्रक्रिया का आधार त्रुटिहीन क्यों नहीं बनाया गया? बार-बार आक्षेप लगते रहे लेकिन
हर बार अधकचरे जवाब, दलील या तकरें के आधार पर विभाग अपने निर्णयों को सही ठहराता रहा। गेस्ट टीचर , एसएस टीचर के अलावा कई अन्य पदों पर भी सरकारी नीति में छेद नजर आने पर हो हल्ला मच चुका और मामले अदालतों में लंबित हैं। दलील दी जा रही है कि जेबीटी भर्ती के समय यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि दाएं अंगूठे का निशान लिया जाएगा या बाएं का।
अब हो सकता है कि सभी उम्मीदवारों के एक ही हाथ के निशान से मिलान किया जा रहा हो, इस कारण गफलत मच रही है लेकिन यह तय है कि पूरी चयन प्रक्रिया आनन-फानन में पूरी हुई, इस कारण अनेक तकनीकी और तथ्यात्मक खामियां रह जाने की पर्याप्त गुंजाइश छोड़ दी गई जिनका खमियाजा हजारों परिवारों को उठाना पड़ सकता है। जेबीटी के साढ़े नौ हजार और पदों के लिए सरकार ने आवेदन मांग रखे हैं, लिहाजा नए उम्मीदवारों में भी प्रक्रिया के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हो सकती है। सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि व्यवस्था अथवा प्रक्रिया की खामियों का ठीकरा उम्मीदवारों पर न फूटे। प्रक्रिया की कमी-कमजोरियों का निराकरण करके व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए। जानबूझ कर या अनजाने में की गई गलतियां प्रक्रिया को पंगु बना रही हैं, साथ ही सरकार की साख को भी बट्टा लग रहा है।
अब हो सकता है कि सभी उम्मीदवारों के एक ही हाथ के निशान से मिलान किया जा रहा हो, इस कारण गफलत मच रही है लेकिन यह तय है कि पूरी चयन प्रक्रिया आनन-फानन में पूरी हुई, इस कारण अनेक तकनीकी और तथ्यात्मक खामियां रह जाने की पर्याप्त गुंजाइश छोड़ दी गई जिनका खमियाजा हजारों परिवारों को उठाना पड़ सकता है। जेबीटी के साढ़े नौ हजार और पदों के लिए सरकार ने आवेदन मांग रखे हैं, लिहाजा नए उम्मीदवारों में भी प्रक्रिया के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हो सकती है। सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि व्यवस्था अथवा प्रक्रिया की खामियों का ठीकरा उम्मीदवारों पर न फूटे। प्रक्रिया की कमी-कमजोरियों का निराकरण करके व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए। जानबूझ कर या अनजाने में की गई गलतियां प्रक्रिया को पंगु बना रही हैं, साथ ही सरकार की साख को भी बट्टा लग रहा है।