Thursday 21 June 2012








फर्जीवाड़ा रोका जाए
 अपनी अति प्रयोगवादिता के कारण लगातार चर्चा में रहे शिक्षा विभाग ने शिक्षक भर्ती के लिए निजी स्कूलों से अनुभव प्रमाणपत्र लाने की शर्त लगा कर एक ऐसे परोक्ष व्यूह की रचना कर दी है जो आवेदकों की जेब पर तो भारी पड़ ही रहा है, विभाग की विश्वसनीयता भी घिरती नजर आ रही है। स्वयं शिक्षा विभाग को भी अहसास है कि निजी स्कूल संचालकों को लाखों कमाने का धंधा मिल गया है। इसीलिए अनुभव प्रमाणपत्र पर जिला शिक्षा अधिकारी के काउंटर साइन व कुछ अन्य शर्तो से संबंधित हिदायतें जारी करनी पड़ी हैं। चार वर्ष तक पढ़ाने का अनुभव रखने वाले अध्यापकों को सीधी भर्ती में हरियाणा अध्यापक पात्रता परीक्षा से छूट का शिक्षा विभाग का फैसला निजी स्कूल संचालकों के लिए लॉटरी जैसा तोहफा माना जा रहा है। बड़ी संख्या में निजी स्कूल शिक्षा विभाग के मापदंड पूरे नहीं करते। हर वर्ष इनकी मान्यता रद होने की बात उठती है लेकिन न जाने किस आधार पर इसका नवीनीकरण हो जाता है। बार-बार विभाग की विश्वसनीयता और मापदंडों पर सवाल उठते हैं लेकिन समय बीतने के साथ आवाज धीमी पड़ जाती है। यही निजी स्कूल अब सरकारी नौकरी का आधार बनने जा रहे हैं। मामला आरटीई का हो या बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा का, हर अवसर पर शिक्षा विभाग के निशाने पर रहे हैं निजी स्कूल। अब अनुभव प्रमाणपत्र से उम्मीदवारी सुनिश्चित करते वक्त शिक्षा विभाग क्या उन स्कूलों की प्रतिष्ठा का आकलन करेगा? क्या अस्थायी मान्यता प्राप्त स्कूलों के अनुभव प्रमाणपत्र को भी स्थायी मान्यता वाले स्कूलों जितना ही विश्वसनीय माना जाएगा? वैसे स्थायी अध्यापक के पदों के लिए आवेदन शर्तो में पात्रता परीक्षा से छूट के फैसले पर कई सवाल उठे थे। इसे सरकार की शिक्षा नीति के घोर विरोधाभास के रूप में देखा गया था। अब अनुभव प्रमाणपत्रों में फर्जीवाड़े की आशंका भी कई प्रश्नचिह्न लगा रही है। जिस प्रक्रिया का आधार ही संदेहास्पद हो, उससे सुनहरी भविष्य के सपनों की कितनी आस लगाई जाए, आसानी से समझा जा सकता है। अध्यापकों के सभी रिक्त पद भरने की सरकार की तत्परता निश्चित तौर पर सराहनीय है लेकिन सर्वविदित तथ्य है कि जल्दबाजी या एक ही बार में सभी लक्ष्य पूरे करने की उत्कंठा किसी व्यक्ति या संस्था को वास्तविक मार्ग से भटका सकती है। अनुभव प्रमाणपत्रों के नाम पर दुकानदारी न चले और फर्जीवाड़ा भी न हो, यह सुनिश्चित करना शिक्षा विभाग की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।

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